सन्त साधु बनके विचरूं | Chhod kar ghar war vichrun jain

 


संत साधु बनके विचरूँ, वह घड़ी कब आएगी।

चल पडूं मैं मोक्ष पथ पर, वह घड़ी कब आएगी ।।

हाथ में पिच्छी कमण्डल, ध्यान आतम राम का।

छोड़कर घर बार दीक्षा, की घड़ी कब आएगी। ...

आएगा वैराग्य मुझको, इस दुःखी संसार से ।

त्याग दूँगा मोह ममता, वह घड़ी कब आएगी। .....

पाँच समिति तीन गुप्ति बाईस परीषह भी सहूँ।

भावना बारह जूँ भाऊँ, वह घड़ी कब आएगी। संत साधू.....

बाह्य उपाधि त्याग कर, निज तत्त्व का चिन्तन करूँ ।

निर्विकल्प होवे समाधि, वह घड़ी कब आएगी। संत साधु .....

 

छोड़ कर घर-वार विचरूं, chhod kar ghar vaar vichrun wah ghadi kab aayegi, hath mein pichhi kamandal Dhyan atmaram ka poem

मुनि श्री निर्वेग सागर जी की पुस्तिका शुभोपयोग में से संकलित।


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