दो पाटन के बीच में | Chalti Chakki Dekhkar

चलती चक्की देखकर दिया कमाल ठिठोय 

जो कीले से लग गया मार सके ना कोए

ठिठोय का अर्थ: हंसना या खिलखिलाना

साबुत का अर्थ: पूर्ण

Chalti chakki dhek kar Diya Kabira roye sabut bacha na koye, Kabir ka beta Kamaal, जो कीले से लग गया मार सके ना कोए


जब कबीर कहते हैं:

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।

इस पर कबीर के बेटे कमाल कहते हैं:

बाप शेर तो बेटा सवा शेर। 

चलती चक्की देख के, दिया कमाल ठिठोय! 

जो कीली पासहि बसै, बाकौ कछू न होय।।

अथवा

चलती चक्की देख के, दिया कमाल ठिठोय! 

जो कीली से लग गया, मार सके न कोय।।

चलती चक्की देखकर भावार्थ

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।।

कबीर अपने पुत्र कमाल से कहते हैं: संसार रूपी महान चक्की में सारा का सारा संसार पिसता जा रहा है, सुख से प्रीति और दुःख से भीति संसार के प्रत्येक प्राणी को है। फिर भी सुख की प्रताप और दुख का अभाव क्यों नहीं हो रहा है? वो इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि यह संसारी प्राणी संसार में ही रुलता रहेगा, इसको दुख का अनुभव करना होगा। क्योंकि दो पाटों के बीच में धान का दाना साबुत नहीं रह सकता। 

चलती चक्की देख के, दिया कमाल ठिठोय! 

जो कीली से लग गया, मार सके न कोय

इस पर कबीर का पुत्र कमाल कहता है: कील का सहारा जिसने ले लिया उसको कोई कह नहीं सकता कि तू पिस जायेगा, चाहे हजार बार चक्कर क्यों न लग जाए। केन्द्र में हमेशा सुरक्षा रहती है और परिधि में हमेशा घुमाव रहता, केन्द्र में द्रव्य का अवलोकन होता है।

-आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन प्रदीप से कुछ पंक्तियां

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट