माया मरी न मन मरा | mar mar Gaya sharir

माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।
आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर। आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर। Maya mari na mann mara, mar mar gaye sharir Aasha trishna na mari, Keh gaye das kabir आशा तृष्णा नहीं मरी कह गए दास कबीर। माया का अर्थ पैसा। Kabir quote & status on greed, Kabir Das motivation, दाम बिना निर्धन दुःखी जैन


कबीर कहते हैं कि पता नहीं व्यक्ति की तृष्णा कितनी बड़ी है कि व्यक्ति तो मर जाता है पर उसका धन बचा रहता है। 

माया का अर्थ पैसा भी होता है।

और व्यक्ति मन से इतना दुर्बल हो जाता है की आखरी सांस तक वह इस माया के पीछे पड़ा रहता है।

इसलिए कबीर का कहना सार्थक है कि माया भी नहीं मरी और मन भी नहीं मरा। पर जिस शरीर के लिए माया इकट्ठा कर रहा था वह तो मर गया। और आखरी सांस तक मन दुर्बल होकर आशा एवं तृष्णा में प्रवृत्ति करता है। 

अर्थात शरीर तो मर गए पर आशा और तृष्णा तो नहीं मरी, ऐसा कबीर का कहना है।

जैनों वाली बारह भावना में यह पंक्तियां बड़ी सार्थक हैं:
दाम बिना निर्धन दुःखी  तृष्णा वश धनवान 
कबहु न सुख संसार में सब जग देख्यो छान

भावार्थ माया मुई न मन मुआ

कबीर कहते हैं कि हे मनुष्य यदि तू संसारी चीजों में प्रवृत्ति को छोड़कर, भगवान की भक्ति में अपना प्रलोभन बढ़ा देता, तो इस शरीर को कम वेतन देकर भी ज्यादा काम ले सकता था।

व्यक्ति इतना पैसा कमाता है कि अपने जीवन में भोग भी नहीं पाता है।

अतः संत कबीर का यह कहना सार्थक है:

माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।
आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।


टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट