Dheere Dheere re Mana | Kabir Das on being patient motivation
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय।।
धीरे धीरे रे मना |
21 वीं शताब्दी में आज भारत का युवा बड़ी ही जल्दी सब कुछ कर लेना चाहता है। वह चाहता है कि जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी वह पैसे कमा ले या प्रशंसा पा ले।
जो युवा अपनी इस मनोकामना को पूरी नहीं कर पाते वे उदास हो जाते हैं। यहां तक कि कई युवा आत्महत्या का निर्णय भी ले लेते हैं।
पर आत्महत्या या जिंदगी से हताश हो जाना तो किसी समस्या का समाधान नहीं है। अपितु समस्याओं को बढ़ाता ही है।
एक बहुत अच्छा उदाहरण संत कबीर दास ने हमें दिया है। संत कबीरदास कहते हैं कि व्यक्ति को अपना कार्य करने के साथ-साथ थोड़ा धीरज भी रखना चाहिए। उदाहरण के तौर पर खेत पर हमने तो अपना कार्य कर लिया। जो जुताई बुवाई का काम था वह हमने समाप्त कर दिया। पानी के द्वारा खेत को अच्छे से सींच भी लिया। पर फल तो आ ही नहीं रही। यह देखकर भी एक कृषक मायूस नहीं होता है। क्योंकि वह इस सत्य को जानता है कि धीरज रखने पर ही उसको फल मिलेगा।
एक कृषक एक हद तक ही फल उगाने में योगदान देता है। बाकी, ऋतुओं पर उसका कोई बस नहीं चलता। इसलिए हमें भी ज्यादा जल्दबाजी नहीं मचानी नहीं चाहिए। क्योंकि जल्दबाजी मचाने से ना तो कर्म का फल मीठा लगता है और सामने वाले को मायूस करता है।
इसलिए कबीरदास कहते हैं:
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
और कहा भी गया है कि सब्र का फल मीठा होता है।
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