Dukh mein Sumiran sab kare, Kabir ke Dohe

गांधी जी जब अपने परिवार के साथ में दक्षिण अफ्रीका जा रहे थे। तब बीच यात्रा में समुद्र में तूफान आ गया। 

गांधी जी अपनी जीवन गाथा में लिखते हैं कि जैसे ही तूफान आने से जहाज ने हिचकोले खाना प्रारंभ किया तब उस जहाज का दृश्य देखने योग्य था। सभी लोग डर के मारे ईश्वर को याद करने लगे। 

चूंकि गांधी जी इससे पहले भी कई बार समुद्री यात्रा करते रहते थे, उन्हें इस चीज का अनुभव था। 

सभी लोग अपना धर्म- मज़हब भुलाकर बस ईश्वर को ही याद किए जा रहे थे। जहाज के एक हिस्से में से राम नाम की आवाजें आने लगीं। सभी लोग अपनी आयातें भगवान को सुनाने लगे कि 'हे भगवान बस इस बार बचा लीजिए', आदि।

जहाज के व्यक्तियों की हलचल व घबराहट देखकर जहाज का कप्तान लोगों में हिम्मत बांधता रहा। वो कहता कि यह तो कुछ भी नहीं, मैंने तो इससे बड़े-बड़े तूफानों का सामना किया है।

उधर कप्तान लोगों में हिम्मत बांधता इधर गांधी जी भी हिम्मत बांधते।

तूफान तो कुछ देर बाद शांत हो गया। पर लोगों का व्य्वहार भी पूरी तरह से बदल गया। जो लोग कुछ देर पहले अपनी जान की भीख मांग रहे थे अथवा ईश्वर को याद कर रहे थे, वे तूफान खत्म होते ही खाने-पीने मौज-मस्ती में मश्गूल हो गए।

कबीर दास का यह दोहा यहां पर बहुत प्रासंगिक है।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।

जो सुख में सुमिरन करे फिर दुःख काहे को होय॥

 इन पंक्तियों का भावार्थ निम्न लिखित है।

जैसे ही हमारे जीवन में कोई कष्ट आता है तो हम दुखी होकर भगवान के समक्ष अपना रोना रोते हैं। चलो, इसी बहाने कम से कम हम भगवान को स्मरण तो कर लेते हैं। नहीं तो हमारे जीवन में भगवान का नम्बर सबसे आखिरी होता है।

महापुरुष इसके विपरीत, भगवान को सदा ही अपने स्मरण में बनाए रखने का प्रयत्न करते रहते हैं। अथवा यह कहें कि जो भगवान का स्मरण करता है वही महान होता है तो इसमें कोई संशय नहीं।



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दूसरी पंक्ति का अर्थ बड़ा ही मधुर है। कबीर दास जी का कहना है कि जब मनुष्य अपने आप को सुखी मानता है तब वह अपना रौब दिखाता है। 

मान लीजिए कि आपने कोई प्रशंसनीय कार्य किया हो। और जब आपकी प्रशंसा चल रही हो तब आप उसे सुनकर फूले नहीं समाते हैं। कहते रहते हैं कि यह कार्य तो मैंने किया है। कितना ऊंचा हूं मैं। 

और जब कभी आप अपनी बुराई सुनते हैं तब उसका पूरा दारोमदार ईश्वर के जिम्मे डाल देते हैं। 'यह क्या किया भगवान, मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था', इत्यादि। 

इसलिए कबीर दास कहते हैं कि जब आपकी अच्छाई की बातें चल रही हो तो उन्हें अपना न मानकर ऐसा सोचें कि यह सब तो भगवान की देन है। तभी आप महान बन सकेंगे।

यहां पर हमें एक और बात याद आ जाती है। एक बार जब हम कपिल शर्मा शो देख रहे थे। एक दर्शक ने कपिल शर्मा से खड़े हो कर पूछ लिया कि आप इतने जल्दी और इतने बढ़िया चुटकुले कैसे सोच लेते हैं?

कपिल शर्मा ने जवाब दिया कि यह सब तो भगवान की देन है। 

धन्यवाद। 


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